हरी घास पर बिखेर दी हैं
ये किसने मोती की लड़ियाँ?
कौन रात में गूँथ गया है
ये उज्ज्वल हीरों की कड़ियाँ?
जुगनू से जगमग-जगमग ये
कौन चमकते हैं यों चमचम?
नभ के नन्हें तारों से ये
कौन दमकते हैं यों दमदम?
लुटा गया है कौन जौहरी
अपने घर का भरा ख़ज़ाना?
पत्तों पर, फूलों पर, पग-पग
बिखरे हुए रतन हैं नाना।
बड़े सबेरे मना रहा है
कौन ख़ुशी में यह दीवाली?
वन-उपवन में जला दी है
किसने दीपावली निराली?
जी होता, इन ओस-कणों को
अंजलि में भर घर ले आऊँ?
इनकी शोभा निरख-निरखकर
इन पर कविता एक बनाऊँ।
No comments:
Post a Comment